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“कुत्ता चले अगाड़ी,तो हम चलें पिछाड़ी “

j.vinayak
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“कुत्ता चले अगाड़ी,तो हम चलें पिछाड़ी ”

पत्रकारिता जगत में नव आगंतुक हूँ !कहने का तात्पर्य है नया पत्रकार हूँ ,लेखनी करने का शौक रखता हूँ !मेट्रो सिटी में रहने का मात्र दो साल का अनुभव है ,तो ज्यादा समझ नही सका हूँ ,यहाँ कि आबो हवा को !बहरहाल ,एक अजीबो गरीब बदलाव हमें देखने को मिला!बदलाव का नाम है कुत्ता नामक जीव का विकसित होना ! बदलाव का नाम अजीब लगा होगा लेकिन सच यही है !इन्सान को पीछे छोड़ दिया इस जीव ने ! विकास करने के चक्कर में हम मनुष्यों ने कुत्ता को अपना मालिक बना लिया !सुबह सैर करने निकले तो देखे कुत्ता नामक जीव आगे और उसके पीछे इन्सान !जिधर -जिधर कुत्ता जाये उधर आदमी भी जाये !हम पूछना भी चाहे उन इन्सान जी से क्यूँ भाई इसके पास तो दिमाग नहीं ,,आपके पास तो दिमाग है तो उसके अनुसार क्यं भागे जा रहें हैं ?खैर पूछने की हिम्मत नहीं हुई ,कारण शायद हम बताने में असमर्थ हों !चार पहिये वाहन, वो भी दामी कार होगा उस मोटर कार में देखा इन्सान जी गाड़ी चला रहे हैं और कुत्ता महोदय ठाठ से पीछे मालिक की तरह बैठ कर खिरकी से उन इन्सान पर हंस रहा था जो भीड़ भड़ी टेम्पो में लटक कर यात्रा कर रहे थे !हम भी देख कर तनिक हंस दिए और मन ही मन कहा ,,,कुत्ता भी नसीब लेकर पैदा होता है !नसीब इसीलिए क्यूंकि कुत्ता में भी भिन्न भिन्न कटेगरी है जिसका उल्लेख करना उचित नहीं होगा !जी हम पुनः कुत्ता नमक जीव पर चर्चा करना चाहेंगे !हद तो तब हो गयी जिस वक़्त मैं दुकान पर आधी किलो दूध लेने के लिए खड़ा था करीबन आधे घंटे से हमें दूध नही मिला लेकिन एक जनाब आये और गर्व से कहे भाई मेरे कुत्ते के लिए दो किलो दूध देना हम मुह ताकते रह गये ! हद हो गया भाई ,एक ओर एक बच्चा दूध की जगह चावल का मांड पीकर दिन काटता है और इन जनाब को देखिये कि दो किलो दूध कुत्ता के लिए खरीद रहे हैं ! पता नहीं क्या हो गया है हमको जो बेकार का आईडिया था पश्चिम का उन्हें हम एकदम से जीवन में उतार लिए ओर जो पश्चिम की अच्छाई थी उसे लेने से दूर हट गये !पश्चिम वाले यहाँ आकर बड़े हँसते होंगे ,शायद !हमको तो ऐसा लगता है कि कुत्ता को साथ रखने से शायद ऐसा लगता हो इन्सान को कि हम विकसित हो गयें हैं लेकिन कुत्ता ज्यादा चालक निकला इस मामले में ,अरे भाई ,,,विकास के मामले में,,,,,,,,हम गाँव के हैं तो हो सकता है कि हम कुत्ता साथ रखने के आधार को न समझ पा रहें हों लेकिन यह तो जरुर समझ रहें हैं कि नही नही …हम गाँव वाले ही ठीक हैं कुत्ता की जगह गाय नामक जीव को रखते हैं कम -से -कम ताजी दूध मिल जाती है!खैर ,कुत्ता प्रेमी इन्सान को हमारी ओर से एक निवेदन ,,,अपनी मोटर कार में इन्सान को भी जगह दें और दूध कि मात्र दो किलो से कम करके एक किलो करें ,,बाकि एक किलो दूध उन असहाय बच्चों को जरुर देने कि कृपा करें !हम भी जानवर प्रेमी हैं लेकिन हम रोटी का एक टुकरा ही देने में विश्वास रखते हैं ,,,क्या करें दूध कीमती है न ,,और उन बच्चों को भी तो दूध चाहिए न ,,हुजुर !हमारी बातों का बुरा मत मानियेगा ,जनाब हम भी इन्सान हैं !खैर ,एक बात तो जरुर है कि मानव विकास के इस चरण में कोई कुछ कहे या न कहे ये बात हम मन -ही -मन जरुर गुनगुनाते होंगे कि …….कुत्ता चले अगाड़ी ,,,तो हम चले पिछाड़ी,,,,,,,,,,,!

जितेंद्र ज्योति “विनायक ”
युवा पत्रकार

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